द्वितीय भाग का शेष..
बालक यदि कृष्णभावनामृत में प्रशिक्षित नहीं रहता और उल्टे वह भौतिकवाद में प्रगति कर लेता है,तो उसके लिए आध्यात्मिक जीवन विकसित कर पन कठिन है|यह भौतिकवाद क्या है? भौतिकवाद का अर्थ है कि इस जगत् में हम सभी आत्माएँ होते हुए भी इस जगत का किसी न किसी प्रकार से भोग करना चाहते हैं|आनंद आध्यात्मिक जगत् में कृष्ण से संबंधित अपने शुद्ध रूप में विधमान रहता है|किन्तु हम यहाँ कुलषित सुख का भोग कर रहे है|
भौतिक भोग का मूल सिद्धांत मैथुन है|इसलिए मैथुन न केवल समाज में मिलेगा अपितु बिल्ली-समाज,कुत्ता समाज,पक्षी समाज सभी में मिलेगा|दिन में कबूतर कम से कम बीस बार संभोग करता है यही उसका आनंद है|
श्रीमदभगवतं द्वारा यह पुष्टि होती है कि भौतिक भोग नर तथा नारी के यौन-मिलाप से अधिक किसी अन्य पर आधारित नहीं है|प्रारम्भ में कोई लड़का सोचता है,"वाह!वह लड़की कितनी सुंदर है" और लड़की कहती है कि वह लड़का उत्तम है|जब वे मिलते हैं तो भौतिक कल्मष अधिक प्रगाढ़ हो जाता है|और जब वे संभोग करते हैं,तो वे और अधिक लिप्त हो जाते हैं|कैसे?जैसे ही लड़का तथा लड़की विवाहित हो जाते है,वे एक घर चाहते हैं|फिर उनके बच्चे उत्पन्न होते हैं|जब बच्चे जन्म लेते हैं तो वे सामाजिक मान्यता-समाज ,मैत्री तथा प्रेम चाहते हैं|इस तरह भौतिक आसक्ति बढ़ती जाती है|
इन सभी में धन की आवशयकता होती है|जो व्यक्ति अतीव भौतिकवादी होता है वह किसी को भी ठग सकता है,किसी का भी वध कर सकता है,धन की मांग कर सकता है,उधार ले सकता है या चोरी कर सकता है,कोई भी कार्य जिससे धन प्राप्त हो सके ,कर सकता है|वह जानता है कि उसका घर,उसका परिवार,उसकी पत्नी और बच्चे सर्वदा विधमान नही रहेंगे|वे समुद्र के बुलबुले के समान हैं|जो उत्पन्न होते हैं थोड़ी देर में चले जाते हैं|किन्तु वह अत्यधिक आसक्त रहता है|उसके परिपालन के लिए आवश्यक धन प्राप्त करने के लिए वह अपने आध्यात्मिक विकास की बलि दे देता है|"मैं शरीर हूँ|मैं इस भौतिक जगत का हूँ|मैं इस देश का हूँ,मैं इस जाति का हूँ,मैं इस धर्म का हूँ और मैं इस परिवार से संबंधित हूँ|"यह विकृत चेतना बढ़ती ही जाती है|उसका कृष्णभावनामृत कहाँ है?वह इतनी गहराई तक फस जाता है कि उसके लिए धन अपने जीवन से भी अधिक मूल्यवान बन जाता है|दूसरे शब्दों में वह धन के लिए अपने जीवन को खतरे में डाल सकता है|चाहे कोई गृहस्थ हो या श्रमिक,व्यापारी हो या चोर-डकैत,या धूर्त-हर व्यक्ति धन के पीछे लगा हुआ है|यही मोह है|इस बंधन में वह अपने को विनिष्ट कर देता है|
जारी..
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Posted by prakash chand thapliyal
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