Friday, 8 July 2016

पारिवारिक मोह (पंचम भाग/अंतिम भाग)

चतुर्थ भाग का शेष..
अतएव पारिवारिक जीवन की निंदा नहीं की जाती|किन्तु यदि मनुष्य अपनी आध्यात्मिक पहचान भूल कर सांसारिक व्यापारों में फस जाता है,तो वह दुर्गति को प्राप्त होता है|उसके जीवन का उदेश्य नस्ट हो जाता है|कोई यह सोचता है कि मैं कामवासना से अपने को नही बचा सकता तो उसे चाहिए कि वह विवाह कर ले|इसकी संस्तुति है|लेकिन अवेध मैथुन न किया जाये|यदि कोई व्यक्ति किसी स्त्री को चाहता है या कोई स्त्री किसी पुरुष को चाहती है,तो उन्हें चाहिए कि विवाह करके कृष्णभावनामृत में जीवन बिताये|
जो व्यक्ति बचपन से ही कृष्णभावनामृत में प्रशिक्षित किया जाता है,भौतिक जीवन शैली के प्रति स्वभावतः उसकी रुचि काम हो जाती है और पचास वर्ष की आयु में वह ऐसे जीवन का परित्याग करना शुरू करता है? पति और पत्नी घर छोड़कर  एक साथ तीर्थ यात्रा पर चले जाते हैं|यदि कोई व्यक्ति पच्चीस वर्ष से लेकर पचास वर्ष की आयु तक पारिवारिक जीवन में रहा है,तो तब तक उसकी कुछ संताने अवश्य ही बड़ी हो जाती है|इस तरह पचास वर्ष की आयु में पति अपने पारिवारिक मामले अपने गृहस्थ जीवन बिताने वाले पुत्रो में से किसी को सौंप कर अपनी पत्नी के साथ पारिवारिक बंधनो को भुलाने के लिए किसी तीर्थस्थान की यात्रा पे जा सकता है|जब वह पुरुष पूरी तरह विरक्त हो जाता है,तो वह अपनी पत्नी से अपने पुत्रो के पास वापस चले जाने के लिए कहता है और स्वयं अकेला रह जा है|यही वैदिक प्रणाली है|हमे क्रमशः आध्यात्मिक जीवन में उन्नति करने के लिए अपने आप के अवसर देना चाहिए|अन्यथा यदि हम सारे जीवन भौतिक चेतना में ही बंधे रहे तो हम अपने कृष्ण चेतना में पूर्ण नहीं बन सकेंगे और इस मानव जीवन के सुअवसर को खो देंगे|
तथाकथित सुखी पारिवारिक जीवन का अर्थ है कि हमारी पत्नी तथा हमारी संताने हमे अत्यधिक प्रेम करती है|इस तरह हम जीवन का आनंद उठाते हैं| किन्तु हम यह नही जानते कि यह आनंद य भोग मिथ्या है और मिथ्या आधार पर टिका है|हमें पालक झपकते ही इस भोग को त्यागना पड़ता है|मृत्यु हमारे वश में नहीं है|भगवतगीता से हमे ये सीख मिलती है कि जो व्यक्ति अपनी पत्नी पर ज्यादा आसक्त रहता है तो मरने पर अगले जन्म में उसे स्त्री का शरीर प्राप्त होगा |यदि पत्नी अपने पति पर अत्यधिक अनुरक्त रहती है तो अगले जन्म में उसे पुरुष का शरीर प्राप्त होगा|इसी प्रकार यदि आप पारिवारिक व्यक्ति नही हैं बल्कि कुत्तो-बिल्लियो से अधिक लगाव रखते है तो अगले जीवन में आप कुता य बिल्ली होंगे |ये कर्म अर्थात् भौतिक प्रकृति के नियम हैं|
कहने का तात्पर्य यह है कि मनुष्य को तुरंत ही कृष्णभावनामृत शुरू कर देना चाहिए |माँ लीजिये कि कोई यह सोचता है,"मैं अपना यह खेलकूद का जीवन बिताने के बाद जब बूढ़ा हो जाऊंगा और मेरे पास करने के लिए कुछ नही होगा तो मैं कृष्णभावनामृत संघ में जाकर कुछ सुनूँगा|"निश्चय ही उस समय आध्यात्मिक जीवन बिताया जा सकता है किन्तु इसकी प्रतिभूति कहाँ है कि कोई व्यक्ति वृद्धवस्था तक जीवित रहेगा? मृत्यु किसी भी समय आ सकती है इसलिए आध्यात्मिक जीवन को टालना अत्यंत खतरनाक है|इसलिए मनुष्य को चाहिए कि तत्क्षण कृष्णभावनामृत के सुअवसर का लाभ उठाए|हरे कृष्ण,हरे कृष्ण,कृष्ण कृष्ण,हरे हरे,हरे राम,हरे राम,राम राम,हरे हरे के कीर्तन की विधि से प्रगति द्रुतगति से होती है तथा फल की प्राप्ति तत्काल होती है|
हम उन समस्त देवियों एवम् सज्जनो का आभार प्रकट करते है जो इस साहित्य को पढ़ते है,अनुरोध करेंगे कि घर पे खाली समय में हरे कृष्ण कीर्तन करें और कृष्णभावनामृत में ध्यान लगाये|हमे विश्वास है कि आपको यह विधि अत्यंत सुखकर तथा प्रभावशाली लगेगी|

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Posted by prakash chand thapliyal

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