पारिवारिक मोह
प्रह्लाद महाराज ने अपने मित्रो से कहा, "तुम्हे तुरंत ही कृष्णभावनामृत शुरू कर देना चाहिए|" सारे बालक नास्तिक भौतिकवादी परिवारों में जन्मे थे किन्तु सौभाग्यवश उन्हें प्रह्लाद महाराज की संगति प्राप्त थी जो अपने जन्म से ही भगवान् के महान भक्त थे| जब भी उन्हें अवसर मिलता,और जब अध्यापक कक्षा के बाहर होता तो वे कहा करते , "मित्रों! आओ ,हम कृष्ण कीर्तन करें|यह कृष्णभावनामृत शुरू करने का समय हैं|"
किन्तु जैसा कि हमने अभी कहा ,किसी बालक ने कहा होगा,"किन्तु अभी हम बच्चे हैं|हमें खेलने दीजिये|हम तुरंत मरने वाले नही है,हुमे कुछ आनंद लेने दीजिये|अतः बाद में कृष्णभावनामृत शुरू करेंगे|" लोग यह नही जानते कि कृष्णभावनामृत सर्वोच्च आनंद है|वे सोचते हैं कि जो बालक और बालिकाए इस कृष्णभावनामृत में सम्मलित हुए हैं,वे मूर्ख हैं|"वे प्रभुपाद के प्रभाव से इसमे सम्मिलित हुए हैं और उन्होंने भोगने योग्य अपनी सारी वस्तुए छोड़ दी हैं|" किन्तु वास्तव मैं ऐसा नही है |वे सब बुद्धिमान ,शिक्षित बालक-बालिकाए हैं और अत्यंत सम्मानित परिवारो से आये हैं|वे मूर्ख नही हैं|वे हमारे संघ में सचमुच ही जीवन का आनंद ले रहे हैं अन्यथा इस आंदोलन के लिए वे अपना मूल्यवान समय अर्पित न करते|
वस्तुतः कृष्णभावनामृत में आनंदमय जीवन है लेकिन लोगो को इसका पता नही है|वे कहते है ,"इस कृष्णभावनामृत से क्या लाभ है?" जब मनुष्य इन्द्रियतृप्ति में फसकर बड़ा होता है तो उसमें से निकल पाना बहुत कठिन होता है|इसलिए वैदिक नियमो के अनुसार पाँच वर्ष की अवस्था से ही विद्यार्थी जीवन में बालको को आध्यात्मिक जीवन के विषय में शिक्षा दी जाती हैं|इसे ब्रह्मचर्य कहते हैं|एक ब्रह्मचारी परम चेतना अर्थात कृष्णभावनामृत या ब्रह्म चेतना प्राप्त करने में अपना सारा जीवन अर्पित कर देता|
जारी....
Bloggerpct
Posted by prakash chand thapliyal
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