Monday, 21 March 2016

KAMAKHYA MYSTERY UNLOCKED ( कामाख्या का रहस्य ) BY PRAKASH CHAND THAPLIYAL

नाम: कामाख्या मंदिर, गुवाहाटी


निर्माता: चिलाराय
निर्माण काल :
देवता: कामाख्या देवी
वास्तुकला:
स्थान: नीलांचल पर्वत, निकट गुवाहाटी, असम


कामाख्या मंदिर असम की राजधानी दिसपुर के पास गुवाहाटी से ८ किलोमीटर दूर कामाख्या मे है। कामाख्या से भी १० किलोमीटर दूर नीलाचल पव॑त पर स्थित हॅ। यह मंदिर शक्ति की देवी सती का मंदिर है। यह मंदिर एक पहाड़ी पर बना है व इसका महत् तांत्रिक महत्व है। प्राचीन काल से सतयुगीन तीर्थ कामाख्या वर्तमान में तंत्र सिद्धि का सर्वोच्च स्थल है। पूर्वोत्तर के मुख्य द्वार कहे जाने वाले असम राज्य की राजधानी दिसपुर से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नीलांचल अथवा नीलशैल पर्वतमालाओं पर स्थित मां भगवती कामाख्या का सिद्ध शक्तिपीठ सती के इक्यावन शक्तिपीठों में सर्वोच्च स्थान रखता है। यहीं भगवती की महामुद्रा (योनि-कुण्ड) स्थित है।


तंत्र-मंत्र साधना के लिए विख्यात कामरूप कामाख्या (गुवाहाटी) में शक्ति की देवी कामाख्या के मंदिर में प्रतिवर्ष होने वाले 'अंबुवासी' मेले को कामरूप का कुंभ माना जा सकता है। इसमें भाग लेने के लिए देशभर के साधुओं और तांत्रिकों का जुटना आरंभ हो गया है।


वैसे तो इस वर्ष अंबुवासी मेला 22 से 25 जून तक चलेगा, लेकिन एक सप्ताह पहले से ही तांत्रिकों और साधु-संन्यासियों व साधकों का आगमन आरंभ हो गया है। शक्ति के ये साधक नीलाचल पहाड़ (जिस पर माँ कामाख्या का मंदिर स्थित है) की विभिन्न गुफाओं में बैठकर साधना करते हैं। अंबुवासी मेले के दौरान अजीबो-गरीब हठयोगी पहुँचते हैं।

कोई अपनी दस-बारह फुट लंबी जटाओं के कारण कौतूहल का कारण बना रहता है, कोई पानी में बैठकर साधना करता है तो कोई एक पैर पर खड़े होकर। इन चार दिनों में चार से पाँच लाख श्रद्धालु वहाँ पहुँचते हैं। इतना बड़ा धार्मिक जमावड़ा पूर्वोत्तर में और कहीं नहीं लगता है।

ऐसी मान्यता है कि 'अंबुवासी मेले' के दौरान माँ कामाख्या रजस्वला होती हैं। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार सौर आषाढ़ माह के मृगशिरा नक्षत्र के तृतीय चरण बीत जाने पर चतुर्थ चरण में आद्रा पाद के मध्य में पृथ्वी ऋतुवती होती है। यह मान्यता है कि भगवान विष्णु के चक्र से खंड-खंड हुई सती की योनि नीलाचल पहाड़ पर गिरी थी।

इक्यावन शक्तिपीठों में कामाख्या महापीठ को सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इसलिए कामाख्या मंदिर में माँ की योनि की पूजा होती है। यही वजह है कि कामाख्या मंदिर के गर्भगृह के फोटो लेने पर पाबंदी है इसलिए तीन दिनों तक मंदिर में प्रवेश करने की मनाही होती है। चौथे दिन मंदिर का पट खुलता है और विशेष पूजा के बाद भक्तों को दर्शन का मौका मिलता है।

वैसे भी कामाख्या मंदिर अपनी भौगोलिक विशेषताओं के कारण बेहतर पर्यटन स्थल है और सालभर लोगों का आना-जाना लगा रहता है। यह पहाड़ ब्रह्मपुत्र नदी से बिलकुल सटा है। कामाख्या देवत्तर बोर्ड के प्रशासनिक अधिकारी ऋजु शर्मा के अनुसार, इतने सारे लोगों के आने से व्यवस्था संभालनी कठिन हो जाती है। जिला प्रशासन की मदद ली जाती है। उस दौरान निजी वाहनों के प्रवेश पर रोक लगा दी जाती है।


मेले को असम की कृषि व्यवस्था से भी जोड़कर देखा जाता है। किसान पृथ्वी के ऋतुवती होने के बाद ही धान की खेती आरंभ करते हैं।

पुराणों के अनुसार पिता दक्ष के यज्ञ में पति शिव का अपमान होने के कारण सती हवनकुंड में ही कूद पड़ी थीं जिसके शरीर को शिव कंधे पर दीर्घकाल तक डाले फिरते रहे। सती के अंग जहाँ-जहाँ गिरे वहाँ-वहाँ शक्तिपीठ बन गए जो शाक्त तथा शैव भक्तों के परम तीर्थ हुए। इन्हीं पीठों में से एक—कामरूप असम में स्थापित हुआ, जो आज की गौहाटी के सामने 'कामाख्या' नामक पहाड़ी पर स्थित है।

पश्चिमी भारत में जो कामारूप की नारी शक्ति के अनेक अलौकिक चमत्कारों की बात लोकसाहित्य में कही गई है, उसका आधार इस कामाक्षी का महत्व ही है। 'कामरूप' का अर्थ ही है 'इच्छानुसार रूप धारण कर लेना' और विश्वास है कि असम की नारियाँ चाहे जिसको अपनी इच्छा के अनुकूल रूप में बदल देती थीं।
असम के पूर्वी भाग में अत्यंत प्राचीन काल से नारी की शक्ति की अर्चना हुई है। 

महाभारत में उस दिशा के स्त्रीराज्य का उल्लेख हुआ है। इसमें संदेह नहीं कि मातृसत्तात्मक परंपरा का कोई न कोई रूप वहाँ था जो वहाँ की नागा आदि जातियों में आज भी बना है। ऐसे वातावरण में देवी का महत्व चिरस्थायी होना स्वाभाविक ही था और जब उसे शिव की पत्नी मान लिया गया तब शक्ति संप्रदाय को सहज ही शैव शक्ति की पृष्ठभूमि और मर्यादा प्राप्त हो गई। फिर जब वज्रयानी प्रज्ञापारमिता और शक्ति एक कर दी गईं तब तो शक्ति गौरव का और भी प्रसार हो गया। उस शक्ति विश्वास का केंद्र गोहाटी की कामाख्या पहाड़ी का यह कामाक्षी पीठ है।
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Saturday, 19 March 2016

SHREE RAM STUTI WITH MEANING ( श्री राम स्तुति ) BY PRAKASH CHAND THAPLIYAL


श्रीरामचंद्र कृपालु भजु मन हरण भवभय दारुणं ।
नवकंज लोचन, कंजमुख कर, कंज पद कंजारुणं ॥१॥
व्याख्या- हे मन! कृपालु श्रीरामचंद्रजी का भजन कर. वे संसार के जन्म-मरण रूप दारुण भय को दूर करने वाले है. उनके नेत्र नव-विकसित कमल के समान है. मुख-हाथ और चरण भी लालकमल के सदृश हैं ॥१॥


कंदर्प अगणित अमित छवि नव नील नीरद सुन्दरम ।
पट पीत मानहु तडित रूचि-शुची नौमी, जनक सुतावरं ॥२॥
व्याख्या-उनके सौंदर्य की छ्टा अगणित कामदेवो से बढ्कर है. उनके शरीर का नवीन नील-सजल मेघ के जैसा सुंदर वर्ण है. पीताम्बर मेघरूप शरीर मे मानो बिजली के समान चमक रहा है. ऐसे पावनरूप जानकीपति श्रीरामजी को मै नमस्कार करता हू ॥२॥


भजु दीनबंधु दिनेश दानव दैत्य वंश निकन्दनं ।
 रघुनंद आनंद कंद कोशल चन्द्र दशरथ नंदनम ॥३॥
व्याख्या-हे मन! दीनो के बंधू, सुर्य के समान तेजस्वी , दानव और दैत्यो के वंश का समूल नाश करने वाले,आनन्दकंद, कोशल-देशरूपी आकाश मे निर्मल चंद्र्मा के समान, दशरथनंदन श्रीराम का भजन कर ॥३॥


सिर मुकुट कुंडल तिलक चारू उदारु अंग विभुषणं ।
 आजानुभुज शर चाप-धर, संग्राम-जित-खर दूषणं ॥४॥
व्याख्या- जिनके मस्तक पर रत्नजडित मुकुट, कानो मे कुण्डल, भाल पर तिलक और प्रत्येक अंग मे सुंदर आभूषण सुशोभित हो रहे है. जिनकी भुजाए घुटनो तक लम्बी है. जो धनुष-बाण लिये हुए है. जिन्होने संग्राम मे खर-दूषण को जीत लिया है ॥४॥


इति वदति तुलसीदास, शंकर शेष मुनि-मन-रंजनं ।
मम ह्रदय कंज निवास कुरु, कामादि खल-दल-गंजनं ॥५॥
व्याख्या- जो शिव, शेष और मुनियो के मन को प्रसन्न करने वाले और काम,क्रोध,लोभादि शत्रुओ का नाश करने वाले है. तुलसीदास प्रार्थना करते है कि वे श्रीरघुनाथजी मेरे ह्रदय कमल मे सदा निवास करे ॥५॥


मनु जाहि राचेउ मिलिहि सो बरु सहज सुंदर सावरो |
करुना निधान सुजान सीलु सनेहु जानत रावरो ॥६॥
व्याख्या-जिसमे तुम्हारा मन अनुरक्त हो गया है, वही स्वभाव से ही सुंदर सावला वर (श्रीरामचंद्रजी) तुमको मिलेगा. वह दया का खजाना और सुजान (सर्वग्य) है. तुम्हारे शील और स्नेह को जानता है ॥६॥


एही भांति गौरी असीस सुनी सिय सहित हिय हरषीं अली ।
तुलसी भावानिः पूजी पुनि-पुनि मुदित मन मंदिर चली ॥७॥
व्याख्या- इस प्रकार श्रीगौरीजी का आशीर्वाद सुनकर जानकीजी समेत सभी सखिया ह्रदय मे हर्सित हुई. तुलसीदासजी कहते है-भवानीजी को बार-बार पूजकर सीताजी प्रसन्न मन से राजमहल को लौट चली ॥७॥


जानी गौरी अनुकूल, सिय हिय हरषु न जाइ कहि ।
मंजुल मंगल मूल बाम अंग फरकन लगे ॥८॥
व्याख्या-गौरीजी को अनुकूल जानकर सीताजी के ह्रदय मे जो हरष हुआ वह कहा नही जा सकता. सुंदर मंगलो के मूल उनके बाये अंग फडकने लगे ॥८॥
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SOCIETY CONDITION ( BY PRAKASH CHAND THAPLIYAL )

जहां तक नज़र डालता हूँ, सभी व्यापारी नज़र आते है
किसी ने पूछा अरे भाई क्या ढूंढ रहे हो !
मैंने कहा एक सच्चा देशभक्त ढूंढ रहा हूँ ,
जिसका मान ईमान और स्वाभिमान बिका ना हो .......
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दिल बिक गया , धडकन बिक गयी ,
बेचने वालो ने तो हवा और पानी भी डिब्बों मे पैक कर के बेच दिए!
आँखे बिक गयी , रोशनी भी बिक गयी ,
व्यापारियो ने तो इंसान की कीमत भी आकी है...
सब कुछ तो बिक गया, इंसानियत बिकना बाकी है!!
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समाज बिक गया , संत बिक गए,
बेचने वालो ने तो मजहब के नाम पर फिल्में भी बेच डाली!
मंदिर बिक गए , तीर्थ बिक गए,
व्यापारियो ने तो धर्म की कीमत भी आकी है...
सब कुछ तो बिक गया , भगवान बिकना बाकी है!!
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गाँव बिक गए , शहर बिक गए,
बेचने वाले तो कोयला भी बेच कर खा गए!
राज्य बिक गया , सीमाएं बिक गयी,
व्यापारियो ने तो देश की कीमत भी आकी है...
सब कुछ तो बिक गया , देशभक्ति बिकना बाकी है!!

अगर कुछ कर गुजरने की ललक है तुम्हारे सीने मे,
क्या मजा है , इस कदर अपने लिए यू जीने मे!
होंगे कुछ लोग जिन्होंने जीने के लिए मारना सीखा होगा ,
हमने तो बचपन से ही मरने के लिए जीना सीखा!
नाम तुम्हारा न केवल परिवार मे सिमटा हो,
वीरता तो उसमे है , कफन जिसका तिरंगे मे लिपटा हो!!

छोटी सी गुजारिश है, इतनी सी खबर कर दो,
एक बार जो लिख दू तो , मेरा लेख अमर कर दो!
घर घर तक मैं पहुँचू , उद्देश्य सफल कर दो,
फिर से निवेदन है , थोड़ी सी खबर कर दो!
साँसे कभी थम जाये दिलो मे अमर कर दो .....
आप सभी देशभक्तो से निवेदन है ज्यादा से ज्यादा संख्या मे हमसे जुड़े ............
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POSTED BY PRAKASH CHAND THAPLIYAL

Tuesday, 15 March 2016

A patriotic poem (by prakash chand thapliyal)

ऐ जिंदगी ,

मुझे मेरे इस निष्क्रिय जीवन की सजा दे !
मुझे मेरी मौत से मिला दे !!

अपनी कद काठी का गुरूर, था मेरे मन मे छाया !
जो देश के काम न आ सकी, किस काम की थी वो काया !!

हंसता रहा मजबूर पर ,दिया न कभी किसी को सहारा !
सारी दुनिया से जीत गया ,पर खुद से था मैं हारा !!

दौलत के दम पर खरीदा था प्यार, जब उबल रही थी जवानी !
माँ बाप के संस्कारो की,मै देता गया कुर्बानी !!

प्यार तो वो था ही नही,नोटों की थी वो माया!
धन खत्म जब हो गया,एक पल भी नही टिक पाया!!

आगे रास्ता खत्म था ,पीछे छूट गयी थी एक संकरी गली!
कोई साथ न खड़ा था मेरे,सिर्फ थे बजरंग बली!!

पाकर आशीष उनका ,धयान पवनसुत की भक्ति मे लगा दिया!
शेष बचा सरा जीवन,मात् पित् और देशभक्ति मे लगा दिया!!

समर्पित है ये जीवन देशभक्ति मे,लेना तुम दुनिया वालो देख!
करूँगा जब मै अपने रक्त से,तिरंगे का अभिषेक!!

अगर कुछ कर गुजरने की ललक, है तुम्हारे सीने मे!
क्या मजा है इस कदर,अपने लिए यू जीने मे!!

नाम न तुम्हारा केवल, परिवार मे ही सिमटा हो!
वीरता तो उसमे है, कफन जिसका तिरंगे मे लिपटा हो!!

देना मेरे देश की शरहद पे , रेखा एक तुम खींच !
खून से अपने मै,दूँगा उस शरहद को सींच !!

अगर कभी देश की सेवा ,करते हुए मै मर भी जाउ!
प्राण न्यौछावर कर देश पे,गर्व से मैं भी शहीद कहलाऊँ!!

अगर मौत मिले किसी मोड़ पर तो एक ही गुजारिश करु.........
ऐ मौत,
मुझे मेरी जिंदगी से मिला दे!
अपने देश की सेवा करने का ,एक मौका और दिला दे!!

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Posted by prakash chand thapliyal

Message on behalf of terrorism by prakash chand thapliyal

कौन कहता है कि आतंकवाद का कोई धर्म नही होता......

वाह रे खुदा,तेरी इस जेहादी खुदाई को मेरा सलाम !
आतंकवाद के धर्म ,इस्लाम को मेरा सलाम !!

तेरी जन्नत की राह पे चलता हुआ,वो अपना सब कुर्बान कर गया !
किस मिट्टी का बना था वो दिल,जो मासूमो पे गोली चलाते वक्त भी अल्लाह हुअकबर कह गया !!

वाह रे खुदा के नेक बंदे...
मजहब के नाम पे जो तुमने नरसंहार किया,उस समय प्रकृति भी हुई थी दंडित !
सब कुछ जो सह गया ,उसका नाम था कश्मीरी पंडित !!

मदरसो मे कुरान की आयाते पढ़ाकर ,यही सीख उन्हें सिखलाई थी !
मजहब पूछकर फिर उन्होंनो ,मासूमो पे गोलिया चलाई थी !!

जो बीत गया वो याद है, दुःख से भरी वो कहानी है !
आज जो हिन्दू चुप रहा,उसकी रगो मे पानी है !!

आओ सारे हिन्दुओ मिलकर एक हो जाओ, अब केसरिया परचम लहराना है !
हर शिला पे राष्ट्र की,राम नाम लिखवाना है !!

मैं सारे रामभक्त हिन्दू भाइयो और बहनो का आवाहन करता हूँ आओ मिलकर एक हो जाओ......

जब परिवार पे कोई आँच आती है तो सारे घरवाले मिलकर मुसीबत का सामना करते है!
ठीक उसी प्रकार आज देश पे आतंकवाद का साया है आओ मिलकर इसे देश से बाहर उखाड़ फेके.....
आतंकवाद का सिर्फ एक ही हल ....
हिन्दुराष्ट्र
हिन्दुराष्ट्र 
हिन्दुराष्ट्र
जय श्री राम ....
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Posted by prakash chand thapliyal

Saturday, 12 March 2016

Shiv tandav stotram (शिव तांडव स्तोत्रम्) by prakash chand thapliyal

शिव तांडव स्तोत्रम्

||श्रीगणेशाय नमः ||

जटा टवी गलज्जल प्रवाह पावितस्थले, गलेऽवलम्ब्य लम्बितां भुजङ्ग तुङ्ग मालिकाम् |
डमड्डमड्डमड्डमन्निनाद वड्डमर्वयं, चकार चण्डताण्डवं तनोतु नः शिवः शिवम् ||१||

जटा कटा हसंभ्रम भ्रमन्निलिम्प निर्झरी, विलो लवी चिवल्लरी विराजमान मूर्धनि |
धगद् धगद् धगज्ज्वलल् ललाट पट्ट पावके किशोर चन्द्र शेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम ||२||

धरा धरेन्द्र नंदिनी विलास बन्धु बन्धुरस् फुरद् दिगन्त सन्तति प्रमोद मानमानसे |
कृपा कटाक्ष धोरणी निरुद्ध दुर्धरापदि क्वचिद् दिगम्बरे मनो विनोदमेतु वस्तुनि ||३||

लता भुजङ्ग पिङ्गलस् फुरत्फणा मणिप्रभा कदम्ब कुङ्कुमद्रवप् रलिप्तदिग्व धूमुखे |
मदान्ध सिन्धुरस् फुरत् त्वगुत्तरीयमे दुरे मनो विनोद मद्भुतं बिभर्तु भूतभर्तरि ||४||

सहस्र लोचनप्रभृत्य शेष लेखशेखर प्रसून धूलिधोरणी विधूस राङ्घ्रि पीठभूः |
भुजङ्ग राजमालया निबद्ध जाटजूटक श्रियै चिराय जायतां चकोर बन्धुशेखरः ||५||

ललाट चत्वरज्वलद् धनञ्जयस्फुलिङ्गभा निपीत पञ्चसायकं नमन्निलिम्प नायकम् |
सुधा मयूखले खया विराजमानशेखरं महाकपालिसम्पदे शिरोज टालमस्तु नः ||६||

कराल भाल पट्टिका धगद् धगद् धगज्ज्वल द्धनञ्जयाहुती कृतप्रचण्ड पञ्चसायके |
धरा धरेन्द्र नन्दिनी कुचाग्र चित्रपत्रक प्रकल्प नैक शिल्पिनि त्रिलोचने रतिर्मम |||७||

नवीन मेघ मण्डली निरुद् धदुर् धरस्फुरत्- कुहू निशीथि नीतमः प्रबन्ध बद्ध कन्धरः |
निलिम्प निर्झरी धरस् तनोतु कृत्ति सिन्धुरः कला निधान बन्धुरः श्रियं जगद् धुरंधरः ||८||

प्रफुल्ल नीलपङ्कज प्रपञ्च कालिम प्रभा- वलम्बि कण्ठकन्दली रुचिप्रबद्ध कन्धरम् |
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छि दांध कच्छिदं तमंत कच्छिदं भजे ||९||

अखर्व सर्व मङ्गला कला कदंब मञ्जरी रस प्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम् |
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं गजान्त कान्ध कान्त कं तमन्त कान्त कं भजे ||१०||

जयत् वदभ्र विभ्रम भ्रमद् भुजङ्ग मश्वस – द्विनिर्ग मत् क्रमस्फुरत् कराल भाल हव्यवाट् |
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदङ्गतुङ्गमङ्गल ध्वनिक्रमप्रवर्तित प्रचण्डताण्डवः शिवः ||११||

स्पृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजङ्गमौक्तिकस्रजोर्- – गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः |
तृष्णारविन्दचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समप्रवृत्तिकः ( समं प्रवर्तयन्मनः) कदा सदाशिवं भजे ||१२||

कदा निलिम्पनिर्झरीनिकुञ्जकोटरे वसन् विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरः स्थमञ्जलिं वहन् |
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ||१३||

इदम् हि नित्यमेवमुक्तमुत्तमोत्तमं स्तवं पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धिमेतिसंततम् |
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथा गतिं विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् ||१४||

पूजा वसान समये दशवक्त्र गीतं यः शंभु पूजन परं पठति प्रदोषे |
तस्य स्थिरां रथगजेन्द्र तुरङ्ग युक्तां लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शंभुः ||१५||
इति श्रीरावण- कृतम् शिव- ताण्डव- स्तोत्रम् सम्पूर्णम्....

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Friday, 4 March 2016

LORD RAM TEMPLE PROTEST (श्री राम मंदिर आंदोलन) by prakash chand thapliyal

मैं तो इश्क़ लिखने चला, इंक़लाब लिख गया, आई जंग की घड़ी है ,इसको स्वीकार लो !!

जिसकी कलम मे यार हो, पंक्ति मे जिसकी प्यार हो,उस कवि को आज सिरे से तुम नकार दो !!

चाहे हार हो या जीत हो ,देशभक्ति के ही गीत हो, परीक्षा अब निकट है इसको मान लो !!

चाहे छोटा हो या बड़ा, हिन्द के लिए खड़ा, देख के दुश्मन डरा ,संग्राम अब निकट है इसको जान लो !!

जब गौ का अपमान हो, श्री राम का उपहास हो, हिंदुत्व का परिहास हो ,जंग अब निकट है इसको स्वीकार लो !!













मैं अकेला चला, कारवाँ बन गया, वादा है ये भक्त का , सौदा है ये रक्त का, हथेली पे है लेके मस्तक चला !!
मुझको ऐसे वीर दो, दुश्मन का सीना चीर दो, मस्तको का झुण्ड हो, संग्राम अब प्रचंड हो !!

चारो और रामराज हो, केसरिया ही लिवास हो, पुण्य का अब काम हो, हर शिला पे राम हो, हिंदुत्व का उद्घोष हो इस हकीकत को तुम अब जान लो !!






हिन्द की कभी शाम न होने देंगे, वीरो की कुर्बानी कभी बर्बाद न होने देंगे, जब तक बची है एक बूंद भी लहू की हिंदुत्व को कभी बदनाम न होने देंगे !!

जब सारे वानर मिलकर सहस्त्र योजन समुद्र पर सेतु बांध सकते है तो हम तो मनुष्य है ,क्या हम श्रीराम जन्म भूमि पे राममंदिर का सपना साकार नही कर सकते क्या !!





















मैं तो अकेले ही जा रहा हू श्रीराम की सेवा मे फैसला आपके हाथ मे है आप हमारा साथ देते है या नही,

भविष्य मैं जल्द ही एक व्यापक आंदोलन होगा हिन्दू रक्षा समिति द्वारा ..


कृपया ज्यादा से ज्यादा संख्या मैं हमसे जुड़े.....
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Thursday, 3 March 2016

ARTICLE 370 *(जानिए धारा 370 को)

#‎_उड़_जा_पंछी_ये_देश_पराया‬

आज आजाद भारत के अभिन्न हिस्से कश्मीर कुछ ऐसे कानून है जिनसे लगता ही नही की कश्मीर भारत का हिस्सा है!
जान गवाई देश के जवानो ने वीरता दिखलायी थी जिस माटी मे,
घुट रहा है दम तिरंगे का आज उस कश्मीर घाटी मे !
जिस कश्मीर की आजादी के लिए देश के जवानो ने जान गवाइ वो आज खुद गुलामी मे जी रहा है

जरा कश्मीर मे लगे कानूनों पर नज़र डालते है.....

1. जम्मू-कश्मीर के नागरिकों के पास दोहरी नागरिकता होती है ।
2. जम्मू-कश्मीर का राष्ट्रध्वज अलग होता है ।
3.जम्मू - कश्मीर की विधानसभा का कार्यकाल 6 वर्षों का होता है जबकी भारत के अन्य राज्यों की विधानसभाओं का कार्यकाल 5 वर्ष का होता है ।
4.जम्मू-कश्मीर के अन्दर भारत के राष्ट्रध्वज या राष्ट्रीय प्रतीकों का अपमान अपराध नहीं होता है ।
5.भारत के उच्चतम न्यायलय के आदेश जम्मू - कश्मीर के अन्दर मान्य नहीं होते हैं ।
6.भारत की संसद को जम्मू - कश्मीर के सम्बन्ध में अत्यंत सीमित क्षेत्र में कानून बना सकती है ।
7.जम्मू कश्मीर की कोई महिला यदि भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से विवाह कर ले तो उस महिला की नागरिकता समाप्त हो जायेगी । इसके विपरीत यदि वह पकिस्तान के किसी व्यक्ति से विवाह कर ले तो उसे भी जम्मू - कश्मीर की नागरिकता मिल जायेगी ।
8.धारा 370 की वजह से कश्मीर में RTI लागु नहीं है । RTE लागू नहीं है । 
CAG लागू नहीं होता । ...। 
भारत का कोई भी कानून लागु नहीं होता ।
9.कश्मीर में महिलावो पर शरियत कानून लागु है।
10.कश्मीर में पंचायत के अधिकार नहीं।
11.कश्मीर में चपरासी को 2500 ही मिलते है।
12.कश्मीर में अल्पसंख्यको [ हिन्दू- सिख ] को 16 % आरक्षण नहीं मिलता ।
13.धारा 370 की वजह से कश्मीर में बाहर के लोग जमीन नहीं खरीद सकते है।
14.धारा 370 की वजह से ही पाकिस्तानियो को भी भारतीय नागरीकता मिल जाता है । इसके लिए पाकिस्तानियो को केवल किसी कश्मीरी लड़की से शादी करनी होती है!
जिसकी शरहदो को हुर्रियत और अलगाववादियों ने घेरा ,
किस हक़ से केह दू कश्मीर तु है मेरा !
वीरो ने जान गवाकर भी कुछ नही पाया,
उड़ जा पंछी अब ये देश पराया !
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Posted by prakash chand thapliyal