आज मैं आपलोगों को एक बालक भक्त की कथा सुनाऊँगा जिनका नाम प्रह्लाद महाराज था! वे घोर नास्तिक परिवार मे जन्मे थे!
इस संसार मे दो प्रकार के मनुष्य है - असुर तथा देवता!उनमे अंतर क्या है? मुख्य अंतर यह है कि देवतागण भगवान के प्रति अनुरक्त रहते है जबकि असुरगण नास्तिक होते है ! वे ईश्वर मे इसलिये विश्वास नही करते, क्योंकि वे भौतिकवादी होते हैं ! मनुष्यो की ये दोनो श्रेणियां इस संसार मे सदैव विद्यमान रहती हैं |
कलियुग (कलह का युग) होने से सम्प्रति असुरो की संख्या बढ़ी हुई है किन्तु यह वर्गीकरण सृष्टी के प्राराम्भ से चला आ रहा है। आपलोगो से मैं जिस घटना का वर्णन करने ज रहा हूँ वह सृष्टी के कुछ लाख वर्षो बाद घटी ।
प्रहलाद महाराज सर्वाधिक नास्तिक एवं भौतिक रूप से सर्वाधिक शक्तिशाली व्यक्ति के पुत्र थे । चूँकि उस समय का समाज भौतिकवादी था अतैव इस बालक का भगवान के यशोगान का अवसर ही नही मिलता था । महात्मा का लक्षण् यह होता है की भगवान की महिमा का प्रसार करने के लिए अत्यधिक उत्सुक रहता था ।
जब प्रह्लाद महाराज पाँच वर्ष के बालक थे , तो उन्हें पाठशाला भेजा गया । जैसे ही मनोरंजन का अंतराल आता और शिक्षक बाहर चला जाता वे अपने मित्रो से कहते मित्रो!आओ। हम कृष्णभावनामृत के विषय मे चर्चा करे ।"
यह दृश्य श्रीमदभगवतं क्व सप्तम स्कंध के छठे अध्याय मे वर्णित है ।भक्त प्रह्लाद कहते है , "मित्रो !
यह बाल्यावस्था ही कृषण्भावनामृत अनुशीलन करने का उचित समय है ।"और उनके बालमित्र उत्तर देते है ,
" ओह ! हम तो खेलेंगे | हम कृष्ण -भावनामृत क्यों ग्रहण करे?" प्रतिउत्तर मे प्रह्लाद महाराज कहते है, "यदि तुम लोग बुद्धिमान हो, तो बाल्यावस्था से ही भागवत धर्म प्रारम्भ करो |"
श्रीमदभगवतं भागवत-धर्म प्रस्तुत करता है अर्थात यह ईश्वर विषयक वैज्ञानिक ज्ञान तक ले जाता है | भागवत का अर्थ है, "पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान्" और धर्म का अर्थ है, "विधि-विधान |" यह मानव जीवन अति दुर्लभ है | यह एक महान सुयोग है | इसलिए प्रह्लाद कहते हैं "मित्रो ! तुम लोग सभ्य मनुष्यों के रूप मे उत्पन्न हुए हो, अतः तुम्हारा ये मनुष्य शरीर क्षणभंगुर होते हुए भी महानतम सुयोग है |" कोई भी व्यक्ति अपनी जीवन अवधि नही जानता | ऐसी गणना की जाती है कि इस युग मे मनुष्य-शरीर पाँच सौ वर्षो तक जीवित रह सकता है | किन्तु जैसे जैसे कलयुग आगे बढ़ता जाता है, जीवन की अवधि,स्मृति,दया,धार्मिकता तथा अन्य ऐसी ही विभूतियाँ घटती जाती है | अतएव इस युग मे दीर्घायु अनिश्चित है |
जारी...............
#bloggerpct
Posted by prakash chand thapliyal
इस संसार मे दो प्रकार के मनुष्य है - असुर तथा देवता!उनमे अंतर क्या है? मुख्य अंतर यह है कि देवतागण भगवान के प्रति अनुरक्त रहते है जबकि असुरगण नास्तिक होते है ! वे ईश्वर मे इसलिये विश्वास नही करते, क्योंकि वे भौतिकवादी होते हैं ! मनुष्यो की ये दोनो श्रेणियां इस संसार मे सदैव विद्यमान रहती हैं |
कलियुग (कलह का युग) होने से सम्प्रति असुरो की संख्या बढ़ी हुई है किन्तु यह वर्गीकरण सृष्टी के प्राराम्भ से चला आ रहा है। आपलोगो से मैं जिस घटना का वर्णन करने ज रहा हूँ वह सृष्टी के कुछ लाख वर्षो बाद घटी ।
प्रहलाद महाराज सर्वाधिक नास्तिक एवं भौतिक रूप से सर्वाधिक शक्तिशाली व्यक्ति के पुत्र थे । चूँकि उस समय का समाज भौतिकवादी था अतैव इस बालक का भगवान के यशोगान का अवसर ही नही मिलता था । महात्मा का लक्षण् यह होता है की भगवान की महिमा का प्रसार करने के लिए अत्यधिक उत्सुक रहता था ।
जब प्रह्लाद महाराज पाँच वर्ष के बालक थे , तो उन्हें पाठशाला भेजा गया । जैसे ही मनोरंजन का अंतराल आता और शिक्षक बाहर चला जाता वे अपने मित्रो से कहते मित्रो!आओ। हम कृष्णभावनामृत के विषय मे चर्चा करे ।"
यह दृश्य श्रीमदभगवतं क्व सप्तम स्कंध के छठे अध्याय मे वर्णित है ।भक्त प्रह्लाद कहते है , "मित्रो !
यह बाल्यावस्था ही कृषण्भावनामृत अनुशीलन करने का उचित समय है ।"और उनके बालमित्र उत्तर देते है ,
" ओह ! हम तो खेलेंगे | हम कृष्ण -भावनामृत क्यों ग्रहण करे?" प्रतिउत्तर मे प्रह्लाद महाराज कहते है, "यदि तुम लोग बुद्धिमान हो, तो बाल्यावस्था से ही भागवत धर्म प्रारम्भ करो |"
श्रीमदभगवतं भागवत-धर्म प्रस्तुत करता है अर्थात यह ईश्वर विषयक वैज्ञानिक ज्ञान तक ले जाता है | भागवत का अर्थ है, "पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान्" और धर्म का अर्थ है, "विधि-विधान |" यह मानव जीवन अति दुर्लभ है | यह एक महान सुयोग है | इसलिए प्रह्लाद कहते हैं "मित्रो ! तुम लोग सभ्य मनुष्यों के रूप मे उत्पन्न हुए हो, अतः तुम्हारा ये मनुष्य शरीर क्षणभंगुर होते हुए भी महानतम सुयोग है |" कोई भी व्यक्ति अपनी जीवन अवधि नही जानता | ऐसी गणना की जाती है कि इस युग मे मनुष्य-शरीर पाँच सौ वर्षो तक जीवित रह सकता है | किन्तु जैसे जैसे कलयुग आगे बढ़ता जाता है, जीवन की अवधि,स्मृति,दया,धार्मिकता तथा अन्य ऐसी ही विभूतियाँ घटती जाती है | अतएव इस युग मे दीर्घायु अनिश्चित है |
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