चतुर्थ भाग का शेष....
इस भौतिक जगत् में जीव एक आध्यात्मिक प्राणी है, किन्तु उसमें भोग करने की अर्थात भौतिक शक्ति का शोषण करने की प्रवृति होरी है इसलिए उसे शरीर प्राप्त हुआ है| जीवो की 84,00,000 योनियाँ हैं और हर योनि का प्रथक् शरीर है|शरीर के अनुसार ही उसमे विशिष्ट इन्द्रिया होती हैं जिनसे वे किसी विशेष आनंद का भोग कर सकते हैं |मान लीजिये कि आपको एक कँटीली झाड़ी दे दी जाये और कहा जाय , "देवियो और सज्जनो! यह एक अत्युत्तम भोजन है| यह ऊंटो द्वारा प्रमाणित है|यह अति उत्तम है |" तो क्या आप इसे खाना पसंद करेंगे?"नहीं, आप यह क्या व्यर्थ की वस्तु मुझे दे रहे हैं?" आप कहेंगे, चूँकि आपको ऊँट से भिन्न शरीर मिला हुआ है अतएव आपको कँटीली झाड़िया नही भाती| किन्तु यही झाड़ी ऊँट को दे दी जाये तो वह सोचेगा कि यह तो अत्युत्तम आहार है|
यदि सुअर तथा ऊँट बिना विकट संघर्ष के इन्द्रिय तृप्ति का भोग कर सकते है तो हम मनुष्य क्यों नहीं कर सकते? हम कर सकते हैं किन्तु यह हमारी चरम उपलब्धि नहीं होगी| चाहे कोई सुअर य ऊँट अथवा मनुष्य ,इन्द्रिय तृप्ति भोगने की सुविधाएँ प्रकृति द्वारा प्रदान की जाती हैं |अतएव वे सुविधाएँ जो आपको प्रकृति के नियम द्वारा मिलनी ही हैं उनके लिए आप श्रम क्यों करें? प्रत्येक योनि में शारीरिक माँगो की तुष्टि की व्यवस्था प्रकृति द्वारा की जाती है |इस तृप्ति की व्यवस्था उसी तरह की जाती है जिस तरह दुःख की व्यवस्था की जाती रहती है|क्या आप चाहेंगे की आपको ज्वर चढ़े? नहीं| ज्वर क्यों चढ़ता है? मैं नही जानता|किन्तु यह चढ़ता ही है, है न! क्या आप इसके लिए प्रयास करते है? नहीं| तो यह चढ़ता कैसे है? प्रकृति से|यही एकमात्र उत्तर है|यदि आपका कष्ट प्रकृति द्वारा प्रदत्त है तो आपका सुख भी प्रकृतिजन्य है|इसके विषय मे चिंता न करें|यही प्रहलाद महाराज का आदेश है| यदि आपको बिना प्रयास के ही जीवन मैं कष्ट मिलते हैं,ति सुख भी बिना प्रयास के प्राप्त होगा|
तो इस मनुष्य जीवन का वास्तविक प्रयोजन क्या है? "कृष्णभावनामृत का अनुशीलन|" अन्य सारी वस्तुऍ प्रकृति के नियमो द्वारा, जो अनंततः ईश्वर का नियम है,प्राप्त हो जायेंगी |यदि मैं प्रयास न भी करूँ तो मुझे अपने विगत कर्म तथा शरीर के कारण ,जो भी मिलना है,वह प्रदान किया जायेगा| अतएव आपकी मुख्य चिंता मनुष्य जीवन के उच्चतर लक्ष्य को खोज निकालने की होनी चाहिए🌹🌹🌹🌹
#bloggerpct
Posted by prakash chand thapliyal
इस भौतिक जगत् में जीव एक आध्यात्मिक प्राणी है, किन्तु उसमें भोग करने की अर्थात भौतिक शक्ति का शोषण करने की प्रवृति होरी है इसलिए उसे शरीर प्राप्त हुआ है| जीवो की 84,00,000 योनियाँ हैं और हर योनि का प्रथक् शरीर है|शरीर के अनुसार ही उसमे विशिष्ट इन्द्रिया होती हैं जिनसे वे किसी विशेष आनंद का भोग कर सकते हैं |मान लीजिये कि आपको एक कँटीली झाड़ी दे दी जाये और कहा जाय , "देवियो और सज्जनो! यह एक अत्युत्तम भोजन है| यह ऊंटो द्वारा प्रमाणित है|यह अति उत्तम है |" तो क्या आप इसे खाना पसंद करेंगे?"नहीं, आप यह क्या व्यर्थ की वस्तु मुझे दे रहे हैं?" आप कहेंगे, चूँकि आपको ऊँट से भिन्न शरीर मिला हुआ है अतएव आपको कँटीली झाड़िया नही भाती| किन्तु यही झाड़ी ऊँट को दे दी जाये तो वह सोचेगा कि यह तो अत्युत्तम आहार है|
यदि सुअर तथा ऊँट बिना विकट संघर्ष के इन्द्रिय तृप्ति का भोग कर सकते है तो हम मनुष्य क्यों नहीं कर सकते? हम कर सकते हैं किन्तु यह हमारी चरम उपलब्धि नहीं होगी| चाहे कोई सुअर य ऊँट अथवा मनुष्य ,इन्द्रिय तृप्ति भोगने की सुविधाएँ प्रकृति द्वारा प्रदान की जाती हैं |अतएव वे सुविधाएँ जो आपको प्रकृति के नियम द्वारा मिलनी ही हैं उनके लिए आप श्रम क्यों करें? प्रत्येक योनि में शारीरिक माँगो की तुष्टि की व्यवस्था प्रकृति द्वारा की जाती है |इस तृप्ति की व्यवस्था उसी तरह की जाती है जिस तरह दुःख की व्यवस्था की जाती रहती है|क्या आप चाहेंगे की आपको ज्वर चढ़े? नहीं| ज्वर क्यों चढ़ता है? मैं नही जानता|किन्तु यह चढ़ता ही है, है न! क्या आप इसके लिए प्रयास करते है? नहीं| तो यह चढ़ता कैसे है? प्रकृति से|यही एकमात्र उत्तर है|यदि आपका कष्ट प्रकृति द्वारा प्रदत्त है तो आपका सुख भी प्रकृतिजन्य है|इसके विषय मे चिंता न करें|यही प्रहलाद महाराज का आदेश है| यदि आपको बिना प्रयास के ही जीवन मैं कष्ट मिलते हैं,ति सुख भी बिना प्रयास के प्राप्त होगा|
तो इस मनुष्य जीवन का वास्तविक प्रयोजन क्या है? "कृष्णभावनामृत का अनुशीलन|" अन्य सारी वस्तुऍ प्रकृति के नियमो द्वारा, जो अनंततः ईश्वर का नियम है,प्राप्त हो जायेंगी |यदि मैं प्रयास न भी करूँ तो मुझे अपने विगत कर्म तथा शरीर के कारण ,जो भी मिलना है,वह प्रदान किया जायेगा| अतएव आपकी मुख्य चिंता मनुष्य जीवन के उच्चतर लक्ष्य को खोज निकालने की होनी चाहिए🌹🌹🌹🌹
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Posted by prakash chand thapliyal